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जीवन, संघर्ष और स्लम्स में सामाजिक कार्य: डॉ. जालिंदर अडसुळे जी की किताब पर एक विस्तृत समीक्षा

नमस्ते दोस्तों! आज की भागदौड़ भरी दुनिया में, जब हम शहरों की चमक-दमक और ऊँची इमारतों को देखते हैं, तो अक्सर भूल जाते हैं कि उनके साये में छिपी हैं अनगिनत झुग्गी-झोपड़ियाँ याने वो स्लम्स जहाँ लाखों लोग रोजाना जीवन की जंग लड़ते हैं। गरीबी, असुरक्षा, गंदगी भरी गलियाँ, शिक्षा का अभाव, अपराध और समाज से अलग-थलग पड़ जाना ये सब उनकी रोजमर्रा की हकीकत हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन स्लम्स में बदलाव कैसे लाया जा सकता है? इसी सवाल का जवाब देती है डॉ. जालिंदर अडसुळे की नई किताब, “Life, Toil & Social Work in Slums: Theory & Experiences” (जीवन, संघर्ष और स्लम्स में सामाजिक कार्य: सिद्धांत और अनुभव)।

मैंने हाल ही में ये किताब पढ़ी और मुझे लगा कि ये सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि एक आईना है जो शहरी भारत की असली तस्वीर दिखाता है। ये न केवल स्लम्स की कड़वी सच्चाइयों को सामने लाती है, बल्कि सामाजिक कार्य की ताकत, उसकी मुश्किलों और उम्मीदों को भी बखूबी बयान करती है। यह पुस्तक न केवल स्लम्स की वास्तविकताओं को उजागर करती है, बल्कि सामाजिक कार्य की भूमिका, उसकी चुनौतियों और संभावनाओं को भी गहराई से समझाती है। अगर आप समाज सेवा, शहरी विकास या मानवीय कहानियों में रुचि रखते हैं, तो ये समीक्षा आपके लिए है। चलिए, एक-एक करके इस किताब की दुनिया में गोता लगाते हैं!

लेखक का परिचय

प्रस्तुत पुस्तक के लेखक डॉ. जलिंदर अडसुळे कोई साधारण लेखक नहीं हैं; वे एक ऐसे इंसान हैं जिन्होंने किताबों की दुनिया और जमीन की हकीकत दोनों को जीया है। राजनीति विज्ञान और कानून में स्नातक करने के बाद, उन्होंने सामाजिक कार्य में मास्टर्स डिग्री हासिल की, और फिर समाजशास्त्र में डॉक्टरेट और पोस्ट-डॉक्टरेट आवास (हाउसिंग) जैसे महत्वपूर्ण विषय पर किया।

लेकिन उनकी असली ताकत है उनका ग्रासरूट अनुभव। वे सिर्फ क्लासरूम में पढ़ाने वाले प्रोफेसर नहीं, बल्कि स्लम्स में जाकर लोगों के साथ काम करने वाले एक सच्चे समाजसेवी हैं। यही वजह है कि उनकी लेखनी में सिद्धांतों की गहराई और जीवन की असली कहानियाँ इतनी खूबसूरती से घुलमिल जाती हैं। पढ़ते हुए लगता है जैसे कोई दोस्त अपनी जिंदगी की कहानी सुना रहा हो – ईमानदार, प्रेरणादायक और विचारोत्तेजक।

किताब के बारे मे (सारांश)

ये किताब विभिन्न समय पर लिखे गए लेखों का संग्रह है, जो पहले राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में छप चुके हैं। लेकिन ये सिर्फ लेखों का ढेर नहीं, बल्कि एक सुसंगत कहानी है जो स्लम्स की दुनिया को चार मुख्य भागों में बाँटती है। मैंने इसे पढ़ते हुए महसूस किया कि हर पेज पर नई अंतर्दृष्टि मिलती है:

  • स्लम्स को समझना (Understanding Slums): यहां लेखक स्लम्स के जन्म की वजहों पर रोशनी डालते हैं। जैसे तेज शहरीकरण, रोजगार की तलाश में गांवों से शहरों की ओर पलायन, सरकारी नीतियों की कमजोरियाँ इत्यादी। भारत में स्लम्स का फैलाव कितना व्यापक है, और उनकी जटिलताएँ क्या हैं यह भी स्पस्ट किया गया हैं? किताब में शहरी गरीबों की रोजाना की मुश्किलों का जीवंत वर्णन है। जैसे पानी की कमी से लेकर स्वास्थ्य से सम्बंधित समस्याओं तक। मिसाल के तौर पर, लेखक बताते हैं कि कैसे एक स्लम में रहने वाला परिवार बाढ़ के मौसम में अपनी झोपड़ी बचाने की जद्दोजहद करता है।
  • सामाजिक कार्य की भूमिका (Social Work in slums Interventions): ये हिस्सा सबसे प्रेरणादायक है! यहां एनजीओ और सामाजिक कार्यकर्ताओं की कहानिओ को उजागर किया गया हैं जो स्लम्स में स्वास्थ्य सम्बंधित शिबिर लगाते हैं, बच्चों को पढ़ाते हैं, महिलाओं को सशक्त बनाते हैं, और समुदायों को संगठित करते हैं। लेकिन इन्हे भी कई चुनौतिओ का सामना करना पड़ता है। जैसे स्थानीय राजनीति का दबाव, संसाधनों की कमी इत्यादी। इस सन्दर्भ में लेखक अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हैं, जैसे कि, कैसे एक छोटी सी पहल से एक पूरा समुदाय बदल सकता है।
  • ऐतिहासिक विकास (Historical Development): यहा स्लम्स में सामाजिक कार्य का सफर कैसे शुरू हुआ? इसपर विस्तृत चर्चा की गई हैं। किताब में इसका ऐतिहासिक विकास बताया गया है, साथ ही समाज कार्य शिक्षा और स्लम अध्ययनों के बीच के रिश्ते पर भी चर्चा हैं। सरकारी योजनाओं का स्लम्स पुनर्वसन में क्या असर पड़ा, अच्छा या बुरा? ये हिस्सा हमें अतीत से सीखने की प्रेरणा देता है।
  • क्रांतिकारी सोच (Radical Approaches): यहा लेखक क्रांतिकारी सोच के माध्यम से स्लम्स में बदलाव लाना चाहते हैं। पारंपरिक तरीकों से हटकर, लेखक संरचनात्मक बदलाव की बात करते हैं। सिर्फ जरुरतमंद को मदत पहुंचाना काफी नहीं; बल्कि असमानता की जड़ को ढूँढना और उसे नष्ट आवश्यक हैं। जैसे आर्थिक नीतियाँ और सामाजिक पूर्वाग्रह पर वार करना जरूरी है। ये हिस्सा सोचने को मजबूर करता है, जैसे एक कॉल टू एक्शन जो कहता है: “बदलाव लाओ, न कि सिर्फ सहारा बनो!”

ये किताब क्यों पढ़नी चाहिए? यह है पाँच वजह

मैंने यह किताब पढ़कर महसूस किया कि ये सिर्फ स्लम्स के बारे में जानकारी नहीं देती, बल्कि स्लम्स में रहनेवाले लोगो के संकटभरे जीवन पर सोचने को मजबूर करती है। यहां कुछ वजहें हैं जो हमें यह किताब पढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं:

  • सिद्धांत और वास्तविक जीवन का मिश्रण: इस किताब में किताबी ज्ञान के साथ-साथ लेखक के असली अनुभव भी हैं, जो इसे महत्वपूर्ण बनाते हैं।
  • आज की हकीकत: दुनिया के साथ-साथ भारत में भी शहरीकरण की बढ़ती रफ्तार देखते हुए, स्लम्स की समस्याएँ और बढ़ सकती है ऐसा विद्वानों का मानना हैं। ये किताब हमें भविष्य में आने वाली चुनौतिओं का सामना करने के लिए तैयार करती है।
  • विद्यार्थी और शोधकर्ताओं के लिए उपयुक्त: अगर आप बीएसडब्ल्यू, एमएसडब्ल्यू, समाजशास्त्र, शहरी अध्ययन या नीति निर्माण का अध्ययन करने वाले छात्र हो, तो ये किताब आपके लिए सोने की खान है।
  • नीति निर्माताओं और एनजीओ के लिए मार्गदर्शक: यह किताब नीति निर्माताओं और एनजीओ को यह समझने में मदद करती है कि स्लम्स में किस प्रकार की चुनौतियाँ होती हैं और उन परिस्थितियों में प्रभावी एवं परिणामदायी कार्यक्रम कैसे संचालित किए जा सकते हैं।
  • सामान्य पाठकों के लिए: यदि आप समाज में बदलाव लाना चाहते हैं, तो यह किताब आपको प्रेरित करेगी और सकारात्मक पहल करने की दिशा में मार्गदर्शन देगी।

इस किताब की खासियत जो इसे अलग बनाती हैं

  • इस किताब के हर अध्याय में जमीन से जुड़े अनुभव और वास्तविक कहानियाँ हैं, जो पढ़ते हुए सीधे दिल को छू जाती हैं।
  • इसमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के लेख शामिल हैं, जो पुस्तक की प्रामाणिकता और विश्वसनीयता को और मजबूत बनाते हैं।
  • स्लम्स और सामाजिक कार्य को एक साथ जोड़ते हुए, यह पुस्तक एक दुर्लभ और उपयोगी दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।
  • पारंपरिक तरीकों से आगे बढ़कर, यह पुस्तक बदलाव की नई राह दिखाती है और समाज में सकारात्मक क्रांति की मांग करती है।

किताब के मुख्य संदेश जो मुझे बहुत अच्छे लगे

  • स्लम्स सिर्फ दुख, जटिलता और संघर्ष की कहानी नहीं, बल्कि ये उम्मीद की भी कहानी हैं। अनेक कामयाब इंसान इन्ही स्लम्स से उभरे हैं।
  • सामाजिक कार्य की भूमिका केवल सहायता तक सीमित नहीं, बल्कि सशक्तिकरण और संरचनात्मक परिवर्तन की दिशा में होनी चाहिए।
  • शहरी गरीबी मिटाने के लिए केवल कल्याणकारी योजनाएँ पर्याप्त नहीं हैं, इसके लिए नीतिगत सुधार और सामाजिक न्याय की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।

यह किताब किनके लिए उपयोगी है?

  • सामाजिक कार्य के विद्यार्थी बीएसडब्ल्यू, एमएसडब्ल्यू और पीएचडी स्तर तक
  • एनजीओ और फील्ड वर्कर – जो प्रतिदिन स्लम्स में काम करते हैं
  • शहरी विकास, पब्लिक पॉलिसी और समाजशास्त्र के विशेषज्ञ
  • समाजशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान के छात्र
  • वह हर व्यक्ति – जो सामाजिक न्याय में विश्वास रखता है और बदलाव का हिस्सा बनना चाहता है

मेरी व्यक्तिगत राय

इस पुस्तक को पढ़ने के बाद स्पष्ट होता है कि स्लम्स केवल गरीबों की बस्ती नहीं हैं, बल्कि वह शहरी भारत के विकास और असमानता दोनों का प्रतीक हैं। डॉ. अडसूळे जी ने अपने गहन अध्ययन और अनुभव के आधार पर एक ऐसा संकलन प्रस्तुत किया है जो न केवल ज्ञानवर्धक है बल्कि प्रेरणादायी भी है।

यह किताब कैसे प्राप्त करें?

यह किताब अब बाजार में उपलब्ध है। यदि आप इसे खरीदना चाहते हैं, तो कृपया नीचे दिए गए व्यक्ती से संपर्क करें।

श्री. गणेश उफाडे7507737567

निष्कर्ष

“Life, Toil & Social Work in Slums” केवल एक पुस्तक नहीं है, बल्कि यह शहरी भारत की असलियत को सामने लाने वाला एक दर्पण है। यह हमें याद दिलाती है कि असली विकास तब तक संभव नहीं जब तक हम समाज के सबसे कमजोर वर्ग याने स्लम्स में रहने वाले लोगों को मुख्यधारा में नहीं लाते।

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